मेडागास्कर की इस पद्धति का इस्तेमाल कर उगाएं धान, उपज होगी दोगुनी

बदलते वक्त के साथ भारतीय वैज्ञानिकों के अलावा विश्व के कई वैज्ञानिकों की मदद से खेती की नई तकनीकों का भी विकास होता हुआ दिखाई दिया है। धान उत्पादन की कई नई तकनीक आज के समय युवा किसानों को आकर्षित कर रही है, इन्हीं तकनीकों में एक सबसे लोकप्रिय तकनीक है- जिसे मेडागास्कर पद्धति (Madagascar technique) के नाम से जाना जाता है। भारत में कुछ किसान इसे 'श्री विधि' (System of Rice Intensification-SRI या श्री पद्धति) के नाम से भी जानते है। वैसे तो यह पद्धति 1980 के दशक से लगातार इस्तेमाल में लाई जा रही है।

धान उत्पादन की मेडागास्कर विधि

इस पद्धति का नाम मेडागास्कर द्वीप पर पहली बार परीक्षण करने की वजह से मेडागास्कर पद्धति रखा गया है। भारत में लगभग साल 2000 के बाद प्रचलन में आई यह पद्धति, दक्षिण के राज्यों जैसे कि तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में काफी लोकप्रिय रही है। यह बात तो हम जानते है कि नई तकनीकों के प्रयोग के साथ पानी के कम इस्तेमाल को एक महत्वपूर्ण समाधान के रूप में देखा जाता है। श्री पद्धति में भी धान उत्पादन के दौरान पानी का बहुत ही कम इस्तेमाल किया जाता है। वैसे तो हम जानते हैं, कि पारंपरिक खेती में धान के पौधों को पानी से भरे हुए खेतों में उगाया जाता है, लेकिन इस तकनीक में पौधों की जड़ों में बस थोड़ी सी नमी की मात्रा बराबर बनाकर रखनी होगी और पारंपरिक खेती की विधि की तुलना में इस विधि से दो से ढाई गुना तक अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इस विधि का सबसे बड़ा फायदा यह है, कि इसमें धान के पौधों को सावधानीपूर्वक और बिना कीचड़ वाली परिस्थिति में रोपा जाता है, जैसे कि परंपरागत धान की खेती में पौधों को 21 दिन के बाद लगाया जाता है, जबकि इसमें जल्दी उत्पादन को ध्यान रखते हुए उन्हें 10 दिन के बीच में ही बोया जाता है।


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पौधों के बीच में रहने वाले जगह का भी पर्याप्त ध्यान रखना होगा।

किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि जब तक आपके धान से बाली बाहर नहीं निकल आती है, तब तक खेत को थोड़ा बहुत नमी के साथ सूखा रखा जाता है और उसमें पानी बिल्कुल भी नहीं भरा जाता है। जब भी धान के पौधे की कटाई का समय आता है उससे लगभग 25 दिन पहले खेत में पानी पूरी तरीके से निकाल दिया जाना चाहिए, इसीलिए इस विधि का इस्तेमाल करने से पहले आपको अपने खेत की पानी निकासी की व्यवस्था की पर्याप्त जांच कर लेनी होगी।

मेडागास्कर पद्धति में खाद अनुपात व नर्सरी की तैयारी

मेडागास्कर पद्धति में जैविक खाद का इस्तेमाल सर्वाधिक किया जाता है।


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धान की रोपाई होने के बाद लगभग 10 दिन से ही खरपतवार निकालने की शुरुआत की जानी चाहिए और कम रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल की वजह से आपको कम से कम 2 बार निराई करनी होगी। इस पद्धति के तहत, खरीफ मौसम की फसल के लिए जून महीने के शुरुआत में बीज की बुवाई करनी चाहिए और उसके बाद निरंतर समय अंतराल पर ध्यान से निराई का कार्य करना चाहिए। इस विधि की एक और खास बात यह है कि इसमें नर्सरी तैयार करने के लिए 300 से 400 वर्ग फुट का क्षेत्र ही काफी पर्याप्त माना जाता है। नर्सरी में छोटी क्यारियां बनाई जाती है और इनके एक कोने पर नाली लगाई जाती है, जिससे कि पानी की निकासी सुचारू रूप से हो सके। यदि आप खुद से नर्सरी तैयार करने में सक्षम नहीं हैं, तो इस विधि से तैयार होने वाले धान के लिए बाजार से भी बीज खरीदा जा सकता है, इसके लिए आपको प्रति हेक्टेयर में लगभग 5 किलोग्राम तक बीज डालने की आवश्यकता होगी। जब आपके पास बीज आ जाएंगे तो उन्हें नर्सरी में रोप कर पर्याप्त प्रबंधन, जैसे कि नर्सरी पैड का उचित प्रबंधन और उत्तम खाद की परत का इस्तेमाल, साथ ही ध्यान पूर्वक दिया गया पानी जैसी बातों का ध्यान रखकर रोपण किया जा सकता है। इस विधि के लिए किसान भाइयों को परंपरागत खेती की तुलना में कुछ ज्यादा अलग करने की जरूरत नहीं है, परन्तु खेत के समतलीकरण पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए। आपको 2 से 3 मीटर की दूरी पर क्यारियां बनानी होगी, इसके बाद बिना पानी भरे हुए खेत में नमी को बरकरार रखते हुए 1 घंटे के अंदर की पहले से तैयार हुई नर्सरी का रोपण शुरू कर दें। एक जगह पर एक बार में दो से तीन पौधे ही लगाने चाहिए, सभी किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि यदि आप अपने खेतों में धान की रोपाई जुलाई के पहले सप्ताह में करते हैं, तो 25 से 30% तक अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार तैयार हुए धान की पौध में उचित मात्रा में पोषक तत्व और उर्वरकों की भी आवश्यकता होगी, जिसके लिए जैविक खाद, जैसे कि गोबर खाद, बायोगैस खाद आदि का इस्तेमाल किया जा सकता है। यदि आप रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो एजोटोबेक्टर कल्चर (Azotobacter culture) की सहायता ले सकते हैं।


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जैविक खाद की दर को 8 से 10 टन प्रति हेक्टेयर से बनाकर रखें और अपने खेत की मिट्टी में पोषक तत्वों की जांच करवाने के बाद नाइट्रोजन, सल्फर और पोटाश को पर्याप्त मात्रा में मिलाकर खरपतवार का नियंत्रण किया जा सकता है। किसान भाई ध्यान रखें कि यदि आपने खेत में पानी भरने दिया तो वहां पर काफी ज्यादचारा और कचरा हो जाएगा। इस चारे को काटने के लिए अलग से मेहनत और मजदूरी के पैसे भी आपके बजट को बढ़ा सकते हैं, इसलिए आप कोनोवीडर (CONO WEEDER)का इस्तेमाल कर खरपतवार को निकाल सकते हैं और वक्त रहते हुए अपने खेत में मनचाही उपज प्राप्त कर सकते है। आशा करते हैं कि, श्री विधि के तहत धान उत्पादन की खेती हमारे किसान भाइयों को भविष्य में अच्छा मुनाफा कमा कर दे पाएगी और ऊपर बताई गई जानकारी का इस्तेमाल कर आप भी अपने छोटे से खेत में अच्छी पैदावार कर पाएंगे।